श्री संकटनाशन गणपति अनुष्ठान
संकटनाशन गणेश स्तोत्रम् ऐसा महशक्तिशाली पाठ हैं, जिनका प्रयोग हर कोई सरलता से कर सकता है। संकटनाशन गणपति स्त्रोत साधना में आने वाले हर विघ्न बाधा को समूल नष्ट कर देता है।
साधना क्षेत्र में जब एक नया साधक आये तो उसे पहले गुरु साधना के पश्चात गणपति साधना कर लेनी चाहिये। यह अति आवश्यक है। सीधे मुख्य साधना आरंभ कर के कोई लाभ नही।
तो एक नये साधक को गुरु साधना के पश्चात गणपति साधना करनी चाहिये।
अब गणपति में भी कौन से गणपति की साधना करनी है वह भी जानना अति आवश्यक है। गणपति के भी बहुत से स्वरूप हैं। प्रमुख रूप से हम सब अष्ट विनायक को जानते हैं। इन आठ मुख्य विग्रह के अलावा भी गणपति के अनेक तंत्रोक्त विग्रह हैं। इन विग्रहों की साधना, साधक की मुख्य साधना पर निर्भर करेगा। जैसे साधक अगर महादुर्गा भगवती की मुख्य साधना करेगा तो गणपति भी महागणपति होंगे, भगवती बगला की करना हो तो हरिद्रा गणपति होंगे, महाविद्या मातंगी की करना हो तो उच्छिष्ट गणपति होंगे इत्यादि।
सर्व प्रथम विघ्न विच्छेद हेतु और अकस्मात संकट निवारण हेतु संकटनाशन का अनुष्ठान करना चाहिये। उसकी निम्न विधि है।
किसी भी मास के चतुर्थी तिथि से यह साधना आरंभ करें। पक्ष कोई सा भी हो।
यह प्रयोग अगर श्रीगणेश के मंदिर में या उनके विग्रह के पास करें तो आशानुरूप फल प्राप्त होने की संभावना ज्यादा रहती है।
आसन कुशा का या लाल अथवा पीला। वस्त्र पीला या लाल। दिशा दक्षिण छोड़ के कोई भी। एक सफेद कागज वाली कॉपी और लाल स्याही वाली कलम ले लिजिये। आसन पर बैठकर पहले आचमन, आसन ग्रहण, शिखा बंधन कर लिजिये। फिर अगर स्वस्तिवाचन आता हो तो करें नही तो तीन बार ॐ विष्णवै नमः का पाठ करें। तत्पश्चात हाथ में अक्षत फुल लेकर संकल्प करें। अपना नाम गोत्र बोलकर फिर यह पढे़ मम् साधना मार्गे सर्व संकट निवारणार्थे, अनुष्ठानं मुख्य देवतायाः परम कृपा प्राप्तार्थे अष्टवारं सकंटनाशन गणपति स्त्रोतं लिखितं तद् उपरांतं ब्राह्मणं समर्पणं संकल्पं अहं करिष्ये।
संकल्प उपरांत अक्षत फुल गणपति जी के पास रख दें और फिर गणपति जी के समक्ष पांच पान पत्ते पर 1-1लड्डु, 1-1 सुपारी, 2-2 लौंग और 1-1 इलाइची के साथ चढा़ दें।
फुल की माला या दुर्वा की माला विनायक को पहनायें। दुर्वा अर्पित करें।
अब एक घी का दीपक प्रज्जवलित करें।
इसके पश्चात अपने गुरुजी का ध्यान करें फिर विनायक का। तदुपरांत कुलदेवी और समस्त शिव परिवार का ध्यान करें और पुष्प चढा़यें।
अब संकटनाशन गणपति स्त्रोत लिखना आरंभ करें। कुल आठ बार लिखना है। लिखते समय मन से विनायक का स्मरण करते रहें।
जब लिख लें तब आठ पार इस स्त्रोत का पाठ करें। हर पाठ के आरंभ में थोडे़ से दुर्वा और एक लाल कनेर का पुष्प हाथ में रख लें। पाठ के पूर्ण होने पर श्री गणेश को चढा़ दिया करें।
अगर जीवन में बहुत से संकट हैं और आपका पूजा पाठ, साधना फलित नही हो रहा हो तब ऐसी स्थिति में 108 पाठ इसी विधि से करें, आठ बार लिखने के बाद।
पाठ पूर्ण करके फिर वह कॉपी हाथ में लेकर उस पर अक्षत,पुष्प और दक्षिणा रखकर कहें – मम् जीवनं उपस्थित सर्व संकट नाश एवं साधना मार्ग उपस्थित सर्व विघ्न विच्छेद हेतवे च गणपति कृपा प्राप्तार्थे मम् हस्त लिखितं संकटनाशन गणेश स्त्रोतम् विघ्नहर्ता गणपति चरणं सेवक ब्राह्मणं समर्पयामि। यह बोलकर वहां उपस्थित पुजारी जी को वह हाथ में दे दीजिये। उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिजिये।
विशेष प्रयोग – बहुत बडा़ संकट आ गया हो और उससे निकलने का कोई मार्ग ना दिख रहा हो तो यह विधान जो एक दिवसीय था वह किसी भी पक्ष के चतुर्थी से चतुर्दशी तक 10 दिन लगातार करें।
और अंतिम दिन इस स्त्रोत में उपस्थित विनायक के बारह नामों द्वारा हर नाम थे 108 आहुति मोदक या छोटी छोटी बुंदी के लड्डु से दें।
हवन के पश्चात 12 दीपक प्रज्जवलित कर आरती करें। तथा 12 कुवांरे बालकों को भोजन करवायें। यह एक प्रकार से इस स्त्रोत को सिद्ध करने का अकाट्य विधान है। इस विधान को करने से यह स्त्रोत पूर्ण रूप से जाग्रत हो जाता है एवं जहां कहीं भी इसका प्रयोग होता है वहां स्वयं द्वादश गणेश रक्षा करते हैं तथा संकट हरते हैं।
बहुत अच्छा गुरू जी
JAI MAA VINDHYAVASINI
Jai maa vindhyawasani.kripa dristhi sada bani rahe apki..
आपको प्रणाम
बहुत अच्छा अनुष्ठान है,
सभी साधकों को करना चाहिये।