श्री गणपति रहस्य
भगवान श्री गणेश का जन्म जब मां पार्वती के द्वारा हुआ तो क्या उससे पहले गणपति नहीं थे । भगवान नारायण का विवाह हो या भगवान शिव का विवाह,उनके विवाह में गणपति पूजन का उल्लेख आता है।जब उस समय गणेश जी थे ही नहीं तो फिर पूजन किसका हुआ ?? ऐसे ही प्रश्न कितने ही सनातनियों के मन में आते होंगे।
इस विषय को स्पष्ट रूप से समझिये। अपने पौराणिक व वैदिक ग्रंथों का अध्ययन करने पर आप यह जानेंगे की भगवान गणेश महागणपति के अवतार हैं। व भगवान महागणपति ने अनेक अवतार लिया है। मन्वन्तर भेद से श्री गणेश जी के जन्म पश्चात शिरोच्छेदन की घटना भी अलग अलग है। तथापि इन सबका सामंजस्य लौकिक लीला द्वारा हम प्राणियों का उद्धार मात्र है।
इस विषय को और गहराई से जानें तो ऋग्वेद यजुर्वेद आदि के गणानां त्वा॰ आदि मंत्रों में भगवान गणपति की व्यापकता दिख जायेगी।
बृहज्जाबालोपनिषद् अनुसार ‘उमया सहितः सोमः’ अर्थात सोम में देवी उमा का तत्व विद्यमान है। उसी प्रकार अग्नि को शिव कहा गया है। यही सोम व अग्नि इस जगत के आत्मा है। और इन्हीं दोनों तत्वों के हविर्यज्ञ से श्री गणेश का आविर्भाव होता है।
भगवान गणपति ही इन शिव शक्ति के रचित संसार को विघ्न बाधाओं से मुक्त करते हैं।
भगवती का दिव्य मणिद्वीप हो या भगवान महामहेश्वर का परमकैलाश वहां के अंतः पुर के रक्षण व समस्त गणों का आधिपत्य भगवान गणपति को ही प्राप्त है।
महानिर्वाण तन्त्र में कहा गया है – ‘गणपस्तु महेशानि गणदीक्षाप्रवर्त्तकः।’
ज्योतिष शास्त्र में जन्म नक्षत्रानुसार जातक तीन गणों में से एक गण के अंतर्गत आता है। वे तीन गण देव,मानव,राक्षस हैं तथा इनके अधिपति भी भगवान गणपति हैं।
छन्द शास्त्र के आठ गण जिनका नाम क्रमशः मगण,नगण,भगण,यगण,जगण,रगण,सगण व तगण है,इनके अधिष्ठातृ देवता भी श्री गणेश जी हैं। अक्षरों को ‘गण’ कहा जाता है,एवं उनके ईश हैं भगवान ‘गणेश’ इसी कारण विद्या बुद्धि के प्रदाता भगवान गणेश कहे गयें हैं।
हमारे मेरुदण्ड के नीचे से लेकर ऊपर मस्तिष्क के नाड़ी गुच्छ तक छः चक्र कहे गयें हैं, जिनमें सबसे प्रथम हमारे मेरुदण्ड के आरंभिक नीचे के छोर पर स्थित प्रथम चक्र मूलाधार चक्र के अधिष्ठाता भगवान गणपति हैं। यह एक सबसे विशिष्ट कारण है की यह महाशक्ति प्रथम पूज्य हैं। जिनके कृपा से ही हमारे आध्यात्मिक जीवन का प्रथम स्पंदन होता है।
अतः यह विषय की भगवान गणपति कब से हैं, स्पष्ट है की वह परमब्रह्म के एक साकार स्वरूप हैं जो सदैव से हैं तथा हम सभी के कल्याणार्थ अनेक स्वरूपों को धारण कियें हैं। इस रहस्य को जानकर उनकी पूजा साधना पूर्ण समर्पण से करें।
इस वर्ष 2023 में श्री गणेश चतुर्थी 18 सितंबर से आरंभ होकर अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर तक रहेगी। गृहस्थ तंत्र चैनल व बेवसाइट के माध्यम से भगवान गणपति के अनेक साधनों में से अपनी सुविधानुसार कोई भी अनुष्ठान स्वयं से घर पर अवश्य करें।
श्री विन्ध्यवासिनी शरणं मम्।।
पितृ अनुष्ठान का कन्फर्मेशन दिजिए
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