Description
सिद्ध कालिका भगवती आद्या काली की एक स्वतंत्र अंग विद्या हैं जिनकी साधना विशेष साधक वर्ग सिद्धियों व अर्जित शक्तियों पर नियंत्रण व संतुलन हेतु विशेष रुप से करतें हैं। जहां यह दिव्य कवच देव वर्ग को साधक के प्रति आकर्षित करता है वहीं इसकी उग्र क्षमता के कारण प्रेतों पिशाचों डाकिनियों व ब्रह्मराक्षसों का समुह उच्चाटित हो जाता है अर्थात साधक की उपस्थिति से भाग जाता है। धारणकर्त्ता सर्वत्र अभयता से विचरण करता है। ऐसे साधक को अधिक मौन रहना चाहिए अकारण बोलना नहीं चाहिए। सेवा भाव से माता पिता व गुरु जनों को सम्मान देना चाहिए। तामसिक आहार मदिरा मांस अगर सेवन करतें हैं तो देवी के बलिपीठ पर वर्ष में एकबार यथासंभव बलि करवाना चाहिए। चाहें आप उड़द के पकौड़े दही व मिठाई भी निवेदित कर सकते हैं।
महाकुंभ समापन के उपरांत 26 फरवरी के पश्चात अगले 15-30 दिनों में यह कवच आपको प्राप्त हो जायेगा।
ध्यान दें – कवच यंत्र का संलग्न छायाचित्र केवल प्रदर्शन हेतु है। कवच के चांदी निर्मित खोल का डिजाइन दिखाये गये चित्र से भिन्न हो सकता है।
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