Description
रुद्रकल्पद्रुम अनुसार श्री रुद्राष्टाध्यायी के दसों अध्यायों का पाठ जब षडंगपाठ के अंतर्गत नमक चमक (पंचम व अष्टम अध्याय) का संयोजन कर ग्यारह बार किया जाता है तब उसे एकादशिनी कहतें हैं। एकादशिनी रुद्री की ग्यारह आवृत्ति पाठ को लघुरुद्र कहतें हैं, लघुरुद्र के 11 आवृत्ति अर्थात एकादशिनी की 121 आवृतिपाठ होने पर महारुद्र होता है तथा महारुद्र का 11 आवृत्ति अर्थात एकादशिनी रुद्री का 1331 आवृत्ति पाठ होने पर अतिरुद्र महाअनुष्ठानम् संपन्न होता है। ऐसा दिव्य महा अनुष्ठान केवल महादेव के इच्छा व कृपा से संभव है। प्रयाग के दिव्य त्रिवेणी संगम तट पर महाकुंभ के दिव्य पर्व में आयोजित इस अनुष्ठान की भव्यता दिव्यता महादेव व जगत जननी के कृपा से अनंत होगी। अनुष्ठान का प्रथम चरण महारुद्र तदुपरांत अतिरुद्र पुरे कुंभ महापर्व के काल में पूर्ण की जायेगी। इस अनुष्ठान में संपूर्ण मंडल वेदोक्त पूजन सहित महानिशा काल श्री नीलकंठ अघोरास्त्र अनुष्ठान भी चलेगा। श्री त्रिवेणी नित्य अर्चन, अमावस्या विशेष पूजनं व अन्नक्षेत्र प्रसाद आदि संपन्न होगा। महाशिवरात्रि पर्यंत अनुष्ठान पूर्ण होने पर 26 फरवरी से अगले 15-30 दिन में अनुष्ठान में संकल्पित साधकों को रजत निर्मित श्री पंचाक्षरी महायंत्र 2.5 इंच (जिस पर हर कोई नित्य पंचाक्षरी जप समर्पित व पूजन आदि कर सकते हैं), जप हेतु तंत्रोक्त कालाग्नि रुद्राक्ष माला -1, धारण हेतु श्री गंगा बटुक भैरव कालाग्नि तंत्रोक्त रुद्राक्ष माला, श्री पंचानन महादेव तंत्रोक्त कवच रजत निर्मित, प्रसाद सहित भेजा जायेगा।
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